
इंसान कहाँ मरता है औरों का मारा हुआ, इंसान को खुद उसकी तन्हाई मार देती है, यूँ तो जी भी सकता है यह यार की जुदाई में, मगर इसको तो यहाँ जग हँसाई मार देती है।
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इंसान कहाँ मरता है औरों का मारा हुआ, इंसान को खुद उसकी तन्हाई मार देती है, यूँ तो जी भी सकता है यह यार की जुदाई में, मगर इसको तो यहाँ जग हँसाई मार देती है।
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