
याद में तेरी कैसे दिन गुजरते हैं, पूछो न हमसे आलम वो जुदाई का, कांटो की तरह चुभता रहा वो लम्हा, रो-रोकर गुजरता है रास्ता हर तन्हाई का।
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याद में तेरी कैसे दिन गुजरते हैं, पूछो न हमसे आलम वो जुदाई का, कांटो की तरह चुभता रहा वो लम्हा, रो-रोकर गुजरता है रास्ता हर तन्हाई का।
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